झाड़ू की तितली

उस शाम को उनका ख़त मुझे मिला | यह कागज़ कलम वाला ख़त न था | यह ख़त था बिजली की तरंगों वाला जो मेरे सामने पड़े कंप्यूटर पर नोटिफिकेशन बन कर मेरा इंतज़ार कर रहा था कुछ दिनों से | उनका नाम पढ़ कर बड़ी ख़ुशी हुई और हमारी पहली मुलाक़ात मेरी आँखों के सामने रोशन हो गयी – पहली बार प्रीतम लाल दुआ सभागृह में हो रही एक आर्ट प्रदर्शनी में मुलाक़ात हुई और तभी उनकी ज़मीन से जुड़ी हुई छवि स्क्रीन प्रिंटिंग की तरह छाती के पीछे छुपे दिल पर इंप्रिंट हो गयी | उन्होंने अपने काम का ब्यौरा दिया, मेरे काम का ब्यौरा लिया |

एक प्रसिद्ध कलाकार हैं वे | झाड़ू की तिलिओं से कलाकृतियाँ बनाते हैं | यूँ तो मुझ जैसे शिल्प-कला से बिछड़े व्यक्ति का उस प्रदर्शनी में होना एक बड़ा अपवाद था पर उनकी सरल मौजूदगी से मुझे अपनी मौजूदगी बड़ी सहज महसूस हुई | शायद यही कारण था कि उनकी कलाकृतियाँ और माध्यम झाड़ू की तीलियाँ भी सादगी और नम्रता से सरोबार थीं |

आज बड़े दिनों बाद वो नाम अपने फेसबुक पर पढ़कर बड़ा अच्छा लगा | ख़त बड़ा संक्षिप्त था – वह मेरे गाँव आना चाहते थे | थोड़े दिन रहना चाहते थे |

“बिलकुल, यह तो मुमकिन है” मैंने अपने आप से कहा | न जाने क्या जल्द-बाजी थी | न जाने क्या था मोहल्ले भर का काम, ख़त को पढ़ कर बंद कर दिया और जवाब कुछ समय बाद देने का तय हुआ | अगली बार जब फेसबुक पर बैठूँगा तो उनको आने का न्योता दे दूंगा | थोडा इंतज़ार तो वे कर ही लेंगे…

ग़जब की कलाकृतियाँ बनाते – कभी सरदार पटेल, कभी अब्दुल कलाम, कभी लड्डू खाते गणेश तो कभी अपनी प्रेमिका के पैर चूमता मजनू | हर एक कलाकृति को बड़े प्यार, बड़े इत्मीनान से उन्होंने मुझे दिखाया | आज घर पर बुलाया था | मैं अपने मित्र सुयश को भी साथ ले चला | इसी बहाने अपने जैसे फ़ितूरी लोगों से मिलने का मौका मिल जाएगा | इस शहर में अपने जैसे पागलों और फ़ितुरियों को ढूँढना घाँस के बाड़े से सुई निकालने जैसा है | और इनका फ़ितूर तो था ही लाजवाब | स्वाभाविक था, कि झाड़ू जैसी चीज़ में कला खोजना और उसमें मूरत और सूरत मांझना किसी फ़ितूरी पारखी की निशानी ही हो सकती हैं |

ख़त का जवाब देने के लिए मैं आज बैठा, पुरे सात दिन बाद | उनके प्रोफाइल खोजने वाला ही था कि देखा कि उन्होंने एक पोस्ट शेयर की थी | पोस्ट पढ़ते ही दिल की धड़कनों ने कुछ पलों के लिया धड़कना छोड़ दिया | यकीं और वास्तविकता से परे प्रतीत होता उनके उठावने की खबर का चित्र देखा | उनके किसी रिश्देदार ने यह सन्देश सांझा किया था | कहीं यह कोई धोख़ा तो नहीं | मैंने झट से किसी स्थानीय अखबार का ऑनलाइन संस्करण देखा और तीसरे पृष्ट की शीर्ष पंक्ति पर मेरी रही सही उम्मीद धुल गयी | “कलाम का चित्र बनाने वाले कलाकार ने अपनी जान दे दी” | न्यूज़ पेपर पर लगी उनकी फोटू में वो मुस्कुरा रहे थे और बड़े गज़ब के लग रहे थे | अपनी कलाकृतियों के बीच बैठे बड़े इत्मीनान से फोटू खिचवा रहे थे | वे तो खुद मुर्दा कलाकृतियों में जान डालते थे, इतनी डाल दी कि खुद की कम पड़ गयी |

इतने सहज व्यक्तित्व का ऐसा कदम लेना स्वीकार करना बड़ा कठिन लगा, यह वाकया पचाना उससे भी अधिक कठिन लगा | एक और कलाकार का चेहरा आँखों के सामने दौड़ सा गया | न जाने क्यों ऐसे लोग दुनिया से जल्दी अपना बोरिया बिस्तर सिमटा लेते हैं जो दुनिया को जाने अनजाने में उम्मीद देते हैं | कुछ वर्ष पहले ढेर सारी फिल्मों में उम्मीद की किरणों को बिखेरने वाले रोबिन विलियम्स आकास्मक चल बसे | पता चला कि डिप्रेशन और मानसिक बीमारी से झूझ रहे थे | अपनी फिल्मों से बड़ी खूबी से वो हमारे नस नस में उम्मीद की रूह फूँक देते | पर यह कैसी उम्मीद थी जो हम पर लपेटकर खुद नंगे बदन चल रहे थे | उस सर्द की ठिठुरन हमसे सांझा कर लेते, यूँ अकेले निकल पड़े, मानो जंग में अकेले लड़ने को चुनौती ली हो |

किसी झाड़ के सूखे फलों और पत्तों से बना उनका दिया हुआ तोहफा – एक दीया मेरे कमरे में आज भी रोशन है | और उसे अलंकृत कर रही है उनके हस्ताक्षर और यह पंक्तियाँ – ‘प्रकृति  के रंग, जीवन के संग’ |

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उनका ख़त अधुरा ही रह गया | उनके ख़त के अक्षरों में शायद छिपी थी उनकी गुहार…जो जब तक मेरे अंतर-चेतना के गाँव पहुँचती, तब तक वे किसी और गाँव की ओर पलायन कर चुके थे |

आपके ख़त का जवाब बाकी रहा, उसे पूरा करने के लिए मैं कुछ प्रतिक रूप से न करूँगा | यह कोई माफीनामा भी नहीं, माफ़ी तो आमने सामने मांग लेंगे | यह याद है जो तीन साल पुरानी डायरी और दिल के इंप्रिंट में जब्त थी | कहा जाता है कि एस्किमोस प्रजाति के लोग एक ही बर्फ के पचासों रंग और रूप देख सकते हैं, उसी प्रकार वो शायद एक ही झाड़ू के अनेकों रंग रूप देखते थे और दिखा भी सकते थे –

कभी सूक्ष्म तो कभी स्थूल,

कभी प्रेमी तो कभी फूल,

कभी चिड़िया तो कभी चाय भरी कितली    

कभी देवी तो कभी रंग भरी तितली |

 

ब्रूम आर्ट कलाकार स्वर्गीय श्री सुभाष बोंडे के याद में… उनको सप्रेम भेंट |

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